Chhatrapati sambhaji maharaj: जानिए उनकी जीवन गाथा और मृत्यु का सच!

छत्रपति संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक, अपने साहस और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका जीवन संघर्ष और वीरता की कहानी है।

14 मई 1657 को पुरंदर किले में जन्मे संभाजी, छत्रपति शिवाजी महाराज और सईबाई के पुत्र थे। दो वर्ष की आयु में माता के निधन के बाद, दादी जीजाबाई ने उनका पालन-पोषण किया।

संभाजी ने संस्कृत में गहन शिक्षा प्राप्त की और 'बुधभूषण' सहित कई साहित्यिक कृतियों की रचना की, जो उनकी विद्वत्ता को दर्शाता है।

शिवाजी महाराज के निधन के बाद, 1681 में संभाजी ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली और मुगलों सहित अन्य शत्रुओं के खिलाफ संघर्ष जारी रखा।

संभाजी ने औरंगजेब की सेना के खिलाफ कई सफल अभियानों का नेतृत्व किया, जिससे मराठा साम्राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई।

1689 में संगमेश्वर में मुगलों द्वारा पकड़े जाने के बाद, संभाजी को औरंगजेब के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इस दौरान उन्हें इस्लाम स्वीकारने का प्रस्ताव दिया गया, जिसे उन्होंने दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें कठोर यातनाएँ दी गईं।

11 मार्च 1689 को, अनेक यातनाओं के बाद, संभाजी महाराज को तुलापुर में मृत्यु दंड दिया गया। उनकी शहादत ने मराठा साम्राज्य में एकता और संघर्ष की नई लहर पैदा की।

संभाजी महाराज के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार वडु बुद्रुक में किया गया, जहाँ आज भी उनकी स्मृति में स्मारक स्थित है। यह स्थान उनके बलिदान की गाथा का प्रतीक है।

संभाजी महाराज का बलिदान मराठा साम्राज्य के लिए प्रेरणा स्रोत बना, जिससे मुगलों के खिलाफ संघर्ष में नई ऊर्जा का संचार हुआ। उनकी वीरता और दृढ़ता आज भी स्मरणीय है।